Sunday, August 21, 2011

जयकारों से गूंजा ददरेवा

सादुलपुर
गांव ददरेवा में लोकदेवता गोगाजी महाराज के भरे मेले में जिला व राज्य सहित विभिन्न प्रांतों से आने वाले श्रद्धालुओं का आवागमन शनिवार को भी जारी रहा। शनिवार को बड़ी संख्या में आए श्रद्धालुओं ने धोक लगाकर सुख समृद्धि की कामना की। मेले में उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़ और फिजां में गूंजते जयकारों से ददेरवा गांव गोगामय होने लगा है। जातरू ददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं बल्कि वहां अखाड़े (ग्रुप) में बैठकर गुरु गोरक्षनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनी भाषा में गाकर सुनाते हैं। जीवनी सुनाते समय वाद्य यंत्रों में डेरू व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है।
महल में उमड़ी सर्वाधिक भीड़
ददरेवा में जाहरवीर गोगाजी का महल और वर्तमान समय में गढ़ के नाम से जाने जाने वाले स्थान पर श्रद्धालुओं की सबसे ज्यादा भीड़ रही। उत्तरप्रदेश, पंजाब, दिल्ली, भरतपुर, अलवर आदि स्थानों से आने वाले श्रद्धालुओं में इस महल के प्रति अटूट श्रद्धा है। गोगाजी के मंदिर व गुरु गोरक्षनाथ टीले में धोक लगाने के बाद इस महल में धोक लगाकर श्रद्धालु अपनी यात्रा पूर्ण मानते हैं।
गुरु गोरखनाथ ने 12 वर्ष तक की थी तपस्या
भगवान शंकर के अवतार माने जाने वाले योगी संत गुरु गोरक्षनाथ ने ददरेवा में लगातार 12 वर्ष तक तपस्या की थी। वह तपस्या स्थल आज गुरुगोरक्षनाथ टीले के नाम से जाना जाता है। टीले पर वर्तमान समय में भी गुरु गोरक्षनाथ का धूणा व उनके समय के जाल का पेड़ मौजूद हैं। बताया जाता है कि संवत् 1143 में गुरू गोरक्षनाथ अपने शिष्य औघडऩाथ सहित 1400 अन्य शिष्यों के साथ ददरेवा आए थे तथा यहां पर 1155 तक करीब बारह वर्ष रहकर तपस्या की थी। इस दौरान ही उन्होंने गोगाजी तथा अरचन-सरचन का वरदान दिया था। इसके बाद वे सिद्धमुख प्रस्थान कर गए थे। गोरक्ष टीले के महंत भैरूनाथ की 1६वीं पीढ़ी के महंत बालयोगी कृष्णनाथ बताते हैं कि उस समय का नौलखा बाग (बणी) आज भी सुरक्षित है, जिसमें जांटी, कैर, व जाल के पेड़ लगे हुए हैं। ददरेवा में गोगाजी क ी धोक लगाने के लिए आने वाले जातरू गुरु गोरख टीला पर भी उतनी ही श्रद्धा भाव से पहुंचकर धोक लगाते हैं। महिलाएं मनोतियां मांगने के लिए जाल क ी टहनियों के धागा बांधती हैं।

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